"हर्श्व, दीर्घ और प्लुत से वाणी जन्म लेती कभी मधुर ध्वनि बन कर, तो कभी कर्कश शोर बन कर्ण और अंतर्मन से, अपनी चुहलबाजियां करतीं मग़र कवि उनसे बड़ी ज़्यादती करता शोर और ध्वनि को परे हटा कर ख़ामोशी को गुंजायमान करता रचना, सृजन और कृति को, सन्नाटे के पहर में ही बुलाता वाणी फ़िर नाराज़ हो जाती उसके मुख से निकल कर फ़िसल जाती कविता को अर्थ से अनर्थ पे ले जाती आलोचक के गले में घुसकर, उसकी कलम को रफ़्तार देती कविता की हर पंक्ति को तीव्र सुर में नकार देती" #ध्वनि #वाणी #शोर #सन्नाटा #ख़ामोशी #कवि #आलोचक #YQdidi #YQbaba