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एक नही सौ बार देह का नीर सम स्वेद बहाऊंगी,हर बार य

एक नही सौ बार देह का नीर सम स्वेद बहाऊंगी,हर बार यही बताऊंगी कोशिशें थकी नही,

सूर्य की तपिश भी मामूली है मेरे जुनून के आगे जलायेंगी मशाल हौसले की ये कभी भी हारी नही,

गिर गिर कर नवजात शिशु का सर्वांगीण विकास होता है चंद लोभ में किसी के आगे झुकी नही,

उठो नववितान व नवोन्मेष को हो सृष्टि का समूल विकास करने का अभी वक़्त यहि है सही। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-131 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 4 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
एक नही सौ बार देह का नीर सम स्वेद बहाऊंगी,हर बार यही बताऊंगी कोशिशें थकी नही,

सूर्य की तपिश भी मामूली है मेरे जुनून के आगे जलायेंगी मशाल हौसले की ये कभी भी हारी नही,

गिर गिर कर नवजात शिशु का सर्वांगीण विकास होता है चंद लोभ में किसी के आगे झुकी नही,

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