कुहासे की चादर ओढ़े, यूँ शबनम चली आई है। जैसे मौसम ने आज, सदियों में ली अंगड़ाई है। सर्द मौसम को देख, मेरे दिल को यूँ मस्ती छाई है। तुझे पुकारे हर पल ये, जैसे मिलन की बेला आई है। आ मिल मुझसे ऐ दिलबर, क्यूँ तू खुद को छुपाई है। तू मेरी हमसफ़र, तू ही "साहिल" की परछाईं है। 🌝प्रतियोगिता-103 🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"कुहासे की चादर "🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I