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मन की अपनी सीमा है जो शाश्वत अंग से, तर्क में विष

मन की अपनी सीमा है

जो शाश्वत अंग से, तर्क में विषयासक्तियों की प्रगल्भता 
एवं प्रशान्तता पर उपादान या निरा प्रधान होकर, 
केवल उनकी अविरति को प्रतिक्षण......दर्शाती रहती है।

©Viraaj Sisodiya
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