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इश्क बेहद,वफ़ा बेहद अंजाम कौन सोचता है। तडप दिदार

इश्क बेहद,वफ़ा बेहद अंजाम कौन सोचता है।
तडप दिदार का,इस्क-ए-इज़हार का अंजाम कौन सोचता है।

हर वक्त साथ,चादनी रात,आंखो से ज़ाम का अंजाम कौन सोचता है।
हर याद मे तुम,शब के ख्वाब मे तुम,तुटते निद का अंजाम कौन सोचता है।

मान मंजिल तुझे जिस राह पर अब चल पड़ा हूं मैं।
मिले इन सब के बदले सब ऐसा हसी इनाम कौन सोचता है।

©chandan mishra #galatfahmiya
इश्क बेहद,वफ़ा बेहद अंजाम कौन सोचता है।
तडप दिदार का,इस्क-ए-इज़हार का अंजाम कौन सोचता है।

हर वक्त साथ,चादनी रात,आंखो से ज़ाम का अंजाम कौन सोचता है।
हर याद मे तुम,शब के ख्वाब मे तुम,तुटते निद का अंजाम कौन सोचता है।

मान मंजिल तुझे जिस राह पर अब चल पड़ा हूं मैं।
मिले इन सब के बदले सब ऐसा हसी इनाम कौन सोचता है।

©chandan mishra #galatfahmiya