शायद ये ख़याल मेरे अंदर ही सही एक लौ तो सुलगा ही गई देखी है मैंने इतनी बेबस हस्तियाँ ख़ुद को बेबस इतना कभी पाया नही कभी ! ( अनुशीर्षक में ... ) DQ : शायद मैं हूँ कभी कभी , पाने को ख़ुद की सर जमीं , बेमतलब कुछ भी नही , जानता हूँ ये भी अभी ! शायद मैं हूँ कभी कभी ,