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एक प्याली चाय सी उबलती जा रही है ज़िंदगी, थमने का

एक प्याली चाय सी उबलती जा रही है ज़िंदगी,
थमने का नामो निशान नहीं कहीं,
उफ़ान पर उफ़ान मानो
तूफ़ानों का अम्बार लगाकर,
अनुभव रूपी पकी जा रही है ज़िंदगी।
न कोई हसरत बाकी है,
न किसी तमन्ना का इल्म,
बस प्रार्थनाओं से भरपूर 
महकी जा रही है ज़िंदगी।
अब पत्तियों की भीड़ में
अपनी शरारती अदाओं का अस्तित्व
पाने, लड़ती ही जा रही है 
वो बचपन वाली, लौंग लाची-सी ज़िंदगी।
अखिरकार,
एक कप चाय का गर्माहट भी
ठंडी पड़ जाती है, जब
एक लंबा सफ़र तय करने पर
छन के प्लेट में बिखर जाती है जैसे ज़िंदगी।

नीना झा

©Neena Jha
  #चाय #नीना_झा #neverendingoverthinking