जीवन जीने का सबका अंदाज़ अपना-अपना, बेहतर बनूँ मै ख़ुद से ही यही मेरा सपना। कभी ख़ुश ख़ुद में हुआ करती हूँ, कभी सबको ख़ूब हँसाया करती हूँ। सब सिखाती हैं कारीगरियाँ वक्त की महीन, कभी दिल अपना लगता है धड़कनों के अधीन। कभी ख़ुद में खोकर अपने आप को जी आती हूँ, कभी-कभी ख़ुद को ढूँढकर सब कुछ वहीं भूल आती हूँ। हवाओं के रुख ने सिखाया क्या ख़ूब मुझे ये नया पाठ, जो ना माने, अपनी काबिलियत से उसे भी करलो अपने साथ। उगते सूरज में नई उमंग जीती हूँ, फूलो जैसी ज़िन्दगी से मैं अरमानों का स्वाद पीती हूँ। मै जैसी भी हूँ, मै ख़ुद को बस इतनी पसंद हूँ, कि अपना अंदाज़ रखने से मै कईयों को नापसंद हूँ। ज़िन्दगी जीने का यही अंदाज़ मेरा हैं, मेरे अपने में जो बसता वो जहाँ मेरा है। 🎀 Challenge-226 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी ज़िन्दगी जीने का अंदाज़ लिखिए।