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गज़ल जलाकर खुद आशियां अपना दर-बदर हो गए तोड़ कर

गज़ल 
जलाकर खुद आशियां अपना दर-बदर हो गए 
तोड़ कर रिश्ते नाते गमों से सर-बसर हो गए ।

देकर वो तन्हाई का जख्म जो तुम तड़पाते रहे ,,
वो  जख्म  मेरे  मासूम  दिल  के  नासुर  हो  गए  ।

अपनी गलतियों का उसे कुछ भी तो एहसास नहीं, 
इसलिए तो आप सभी की नजरो से दुर हो गए ।

लबो पर तिश्नगी लिए हर दरिया के किनारे गया ,
मगर इन लबों पे तिश्नगी वापस रहगुजर हो गए ।

इस दर्द-ए-दिल की दबा लाऊं कहाँ से ऐ गौहर  ,
अब शायद हर दवा भी मुझपे बेअसर हो गए ।
                        
             -मो.तबरेज आलम गौहर 
                    सोच साहित्यिक पत्रिका    
                   ( संस्थापक/ सम्पादक )
गज़ल 
जलाकर खुद आशियां अपना दर-बदर हो गए 
तोड़ कर रिश्ते नाते गमों से सर-बसर हो गए ।

देकर वो तन्हाई का जख्म जो तुम तड़पाते रहे ,,
वो  जख्म  मेरे  मासूम  दिल  के  नासुर  हो  गए  ।

अपनी गलतियों का उसे कुछ भी तो एहसास नहीं, 
इसलिए तो आप सभी की नजरो से दुर हो गए ।

लबो पर तिश्नगी लिए हर दरिया के किनारे गया ,
मगर इन लबों पे तिश्नगी वापस रहगुजर हो गए ।

इस दर्द-ए-दिल की दबा लाऊं कहाँ से ऐ गौहर  ,
अब शायद हर दवा भी मुझपे बेअसर हो गए ।
                        
             -मो.तबरेज आलम गौहर 
                    सोच साहित्यिक पत्रिका    
                   ( संस्थापक/ सम्पादक )
tabrejalam8910

Tabrej Alam

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