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आदमी हूँ मैं, उस आदम की संतान, जिसने प्रकृति से उप

आदमी हूँ मैं, उस आदम की संतान,
जिसने प्रकृति से उपर रख दिये,
जिज्ञासा के चंद कमजोर जज्बात,
अनसुनी कर दी,मन की बात।
मैं भी रोज यही तो करता हूँ,
सच तो ये है कि सुनना नहीं चाहता,
पर कहता हूँ कि मैं सुन नहीं पाता,
क्यूँकि आदमी हूँ मैं,आदम की संतान...


 आदमी हूँ मैं, उस आदम की संतान,
जिसने प्रकृति से उपर रख दिये,
जिज्ञासा के चंद कमजोर जज्बात,
अनसुनी कर दी,निजमन की आवाज।
मैं भी रोज यही तो करता हूँ,
सच तो ये है कि सुनना नहीं चाहता,
पर कहता हूँ कि मैं सुन नहीं पाता।,
क्यूँकि आदमी हूँ मैं, आदम की संतान..
आदमी हूँ मैं, उस आदम की संतान,
जिसने प्रकृति से उपर रख दिये,
जिज्ञासा के चंद कमजोर जज्बात,
अनसुनी कर दी,मन की बात।
मैं भी रोज यही तो करता हूँ,
सच तो ये है कि सुनना नहीं चाहता,
पर कहता हूँ कि मैं सुन नहीं पाता,
क्यूँकि आदमी हूँ मैं,आदम की संतान...


 आदमी हूँ मैं, उस आदम की संतान,
जिसने प्रकृति से उपर रख दिये,
जिज्ञासा के चंद कमजोर जज्बात,
अनसुनी कर दी,निजमन की आवाज।
मैं भी रोज यही तो करता हूँ,
सच तो ये है कि सुनना नहीं चाहता,
पर कहता हूँ कि मैं सुन नहीं पाता।,
क्यूँकि आदमी हूँ मैं, आदम की संतान..