जाने कितने जीवों को बेघर किया और कितनों का शिकार किया अपने मतलब के लिए तूने कितनों का संहार किया कुछ का तूने व्यापार किया जीवों में हाहाकार किया खुदगर्ज़ है दयावान नहीं तू अब मान ले इन्सान नहीं तू ये जीवों के अभयारण्य बनाकर कितनों को बचाया तूने अपनी पूरी सृष्टि के चक्र को बिगाड़ा तूने अपनी ताकत की यूं नुमाइश न कर प्रकृति को यूं बर्बाद न कर न जाने कब सनशीलता कहर में बदल जाए न जाने कब ये वक्त बदल जाए ।। © रिमझिम प्रकृति #nojotohindi#kalakaksh#poetry#poem#kavita#nature#life#ecosystem#balance