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माँ गेहूँ की टँकी से गेहूँ निकाला करती थी। फिर बोर

माँ गेहूँ की टँकी से गेहूँ निकाला करती थी।
फिर बोरे को उठाकर बाहर डाला करती थी।
गेहूं को फटककर छाज से
उसे छलनी में निकाला करती थी।
धोकर गेहूओं को तब माँ
छत पर डालकर सुखाया करती थी।
घर की चक्की में माँ
गेहूँ को पीसकर लाया करती थी।
फिर उसी गेहूं के आटे की
माँ गोल गोल रोटी बनाकर खिलाया करती थी।-नेहा शर्मा। माँ के हाथ की रोटी
माँ गेहूँ की टँकी से गेहूँ निकाला करती थी।
फिर बोरे को उठाकर बाहर डाला करती थी।
गेहूं को फटककर छाज से
उसे छलनी में निकाला करती थी।
धोकर गेहूओं को तब माँ
छत पर डालकर सुखाया करती थी।
घर की चक्की में माँ
गेहूँ को पीसकर लाया करती थी।
फिर उसी गेहूं के आटे की
माँ गोल गोल रोटी बनाकर खिलाया करती थी।-नेहा शर्मा। माँ के हाथ की रोटी