तुमने आँखों ही आँखों में सब कुछ कह डाला है। पहले मैं इन्हें नशीला समझकर पी जाया करता था, पहले मैं इन्हें नशीला समझकर पी जाया करता था, इस बार सब कुछ सफे पर लिख डाला है। मैं रुख़सार से आँसुओं का कारण पूछता था। इस बार कश्ती को दरिया में उतारा है। तेरी घनेरी जुल्फ़े मुझे साहिल की ओर खींच लाती थी, इस बार कश्ती को लहरों से टकराना है। #351 #17thpoem #rajat #rajatagarwal #melting_philosophy #mypoetry