पिता के नाम मेरा पत्र हे परम पिता श्री, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। ये तो आपने ही कहा है ना, अब तो सारी हदें पार कर ली हमने, धर्म को व्यवसाय बना दिया, धर्म के नाम पर हम आपस में लड़ रहे हैं और कौन सी ग्लानि शेष है है अब....