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इश्क़ में ज़ख्म भरपूर था, मरहम ना था.. साँसे चलती

इश्क़ में ज़ख्म भरपूर था,
मरहम ना था..
साँसे चलती थी रुक रुक कर, 
उनमें कोई दम ना था..
फिर भी मैं करता रहा इंतज़ार उनका उम्र भर..
कम्बखत ज़ख़्म बढ़ता ही रहा मेरे मरने तक..
पहले से ज़रा भी कम ना था.. Shivansh Mishra Anant  नयनसी परमार
इश्क़ में ज़ख्म भरपूर था,
मरहम ना था..
साँसे चलती थी रुक रुक कर, 
उनमें कोई दम ना था..
फिर भी मैं करता रहा इंतज़ार उनका उम्र भर..
कम्बखत ज़ख़्म बढ़ता ही रहा मेरे मरने तक..
पहले से ज़रा भी कम ना था.. Shivansh Mishra Anant  नयनसी परमार