#OpenPoetry -मेरा क्या काम?- “मैं अपने सादेपन की आड़ लिए चलता हूं, तुम्हारी इस जगमगाती महफ़िल में मेरा क्या काम, मैं साथ अपने चीखों की आवाज़ लिए चलता हूं, तुम्हारे इस शांतिप्रिय जहान में मेरा क्या काम, मैं तो रोज़ इस दिल में कटाक्ष लिए चलता हूं , तुम्हारे इन काबिल-ए-तारीफ महलों में मेरा क्या काम, मैं तो चमक में भी कहीं दाग लिए चलता हूं, तुम्हारी इस बेदाग सफेद सड़क में मेरा क्या काम, मैं तो इन कस्बों की गलियों में गुमनाम हुए चलता हूं, तुम्हारे इस नामी शहर में मेरा क्या नाम, मैं तो अपने सादेपन की आड़ लिए चलता हूं, तुम्हारी इस जगमगाती महफ़िल में मेरा क्या काम?” #OpenPoetry #मेरा_क्या_काम #सादेपन #महफ़िल