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(I) शब-ए-इंतज़ार की कशमकश में न पूछ कैसे सहर हुई

 (I)

शब-ए-इंतज़ार की कशमकश में 
न पूछ कैसे सहर हुई, 
कभी इस झोंके ने डरा दिया, 
कभी उस झोंके ने डरा दिया ।
कभी एक चिराग जला दिया, 
कभी एक चिराग बुझा दिया।

लौ को कशिश तो माचिस से मिली
आग की तपिश फिर ज़ाहिर हुई,
कभी एक चिराग जला दिया,
कभी एक चिराग बुझा दिया ।

जलता रहा तमाम शब,
मिला जा कर क़रार तब ।
कभी इस झोंके ने डरा दिया,
कभी उस झोंके ने डरा दिया ।

(Continued in Caption)

- CalmKazi और क़ायनात  The big impromptu collab with Mayanka Dadu. We delved deep into our observations so mind the length, the story is intact. Happy Reading !

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Click on #uffyemohobbat for Mayanka's artful shayari

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 (I)

शब-ए-इंतज़ार की कशमकश में 
न पूछ कैसे सहर हुई, 
कभी इस झोंके ने डरा दिया, 
कभी उस झोंके ने डरा दिया ।
कभी एक चिराग जला दिया, 
कभी एक चिराग बुझा दिया।

लौ को कशिश तो माचिस से मिली
आग की तपिश फिर ज़ाहिर हुई,
कभी एक चिराग जला दिया,
कभी एक चिराग बुझा दिया ।

जलता रहा तमाम शब,
मिला जा कर क़रार तब ।
कभी इस झोंके ने डरा दिया,
कभी उस झोंके ने डरा दिया ।

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