हमको जरा बदलना होगा ग्रीष्म ऋतु मे गरम सङक पर, पैदल कब तक चलना होगा । बङी दूर है अपनी कुटिया ,पग पग तिल तिल जलना होगा । बिन विद्युत के भरी दोपहरी, पंखा कब तक झलना होगा । जस की तस गरमी की स्थिति,हमको तनिक सँभलना होगा । आदित्य उगलता आग के शोले ,ग्रीष्म ऋतु में ढलना होगा । अब सुन लो कुछ और जीव भी,रहते आए इस धरती पर, अपने-उनके अस्तित्व की खातिर ,हमको जरा बदलना होगा । वैश्विक गर्मी कम करने को,अपना अतिवाद निगलना होगा । सोच समझकर चलना होगा ,परिस्थिति अनुसार बदलना होगा ।। पुष्पेन्द्र पंकज ©Pushpendra Pankaj हमको तनिक बदलना होगा