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शुरू हुआ तो लंबा था सब, चलते चलते फिर वक़्त चला सफ

शुरू हुआ तो लंबा था सब, चलते चलते फिर वक़्त चला
सफर होता एक रोजाना, वो अब होगा उस ओर कहाँ
अपनी मस्ती, थोड़े कायदे, कुछ मनमानियाँ, ढेरों बातें
रोज की नोक झोंक, उस पर शरारतें
काम पर गुस्सा, मन की कहावतें
मुहँ का फुलाना, थोड़ा रूठना, ज्यादा मनाना
हर एक किस्सा, सारे वो पल
हर दिन टूटना, टूटकर फिर सम्भलना
अजनबी सब, खास बने अब
बीत गया दोर, यादें हैं बस उस ओर
सजती थी महफ़िल, होता था शोर
चाय की चाहत, सुकून की डोर
शुरू हुआ तब लंबा था, सारा वक़्त निकल गया
चलते चलते कब पता ही ना चला

©Nisha Bhargava |di√y∆|
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