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तुम नीर क्षीर सी कोमल हो, नयन तुमहारे मधुशाले, गुल

तुम नीर क्षीर सी कोमल हो,
नयन तुमहारे मधुशाले,
गुलशन सी मुस्कान तुमहारी,
होठो पे लफ्ज रसीले,
परि हो या अप्सरा ,
जो धरा को शोभायमान किये,
लज़्ज़ा का आँचल ओढ़े,
संध्या सी शर्माती हो,
धर्म कर्म का आचरण बसा कर,
प्रकृति को भी हर्षाती हो,
तुम अविरल धारा सी मन में बहती हो,
फ़ाज़िल बनकर कुञ्ज में,
 नेक राह दिखाती हो,
तुम नीर क्षीर सी कोमल हो,
शीतल छाया बन,
हृदय को सुख देती हो,
तुम चंद्रमुख सी अलबेली लगती हो।
प्रभात रूपी दर्शन तुम्हरा,
प्रकृति भांति सवंरती हो,
तुम नीर क्षीर सी कोमल लगती हो।
          #प्रदीप सरगम#


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तुम नीर क्षीर सी कोमल हो,
नयन तुमहारे मधुशाले,
गुलशन सी मुस्कान तुमहारी,
होठो पे लफ्ज रसीले,
परि हो या अप्सरा ,
जो धरा को शोभायमान किये,
लज़्ज़ा का आँचल ओढ़े,
संध्या सी शर्माती हो,
धर्म कर्म का आचरण बसा कर,
प्रकृति को भी हर्षाती हो,
तुम अविरल धारा सी मन में बहती हो,
फ़ाज़िल बनकर कुञ्ज में,
 नेक राह दिखाती हो,
तुम नीर क्षीर सी कोमल हो,
शीतल छाया बन,
हृदय को सुख देती हो,
तुम चंद्रमुख सी अलबेली लगती हो।
प्रभात रूपी दर्शन तुम्हरा,
प्रकृति भांति सवंरती हो,
तुम नीर क्षीर सी कोमल लगती हो।
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