#युवा #पलायन खुद के ही आशियाने में मेहमान बन के जाता हूं अव्वल बनने की होड़ में परदेसी गीत गाता हूं बटुवे में माँ की तस्वीर निहार अश्कों से नहाता हूं खुद ही रोटी पकाता और अकेले बैठ के ख़ाता हूं कहते हैं मेरे जहीर ईद का चाँद हो गया हूं साल लग जाते हैं आने में गाँव इफ्तार हो गया हूं माँगता हूं रब से खुशियां माँ बाप की ईदी में उनकी खिदमत नहीं कर पाता शर्मसार हो रहा हूं गाँव में है आशियाना, परदेस तो पिंजरे सा लगता है ऐशो आराम तो है फिर भी क्ल्ब आशियाने को भगता है रोज़ी रोटी के चक्कर में ज़िंदगी अब खाना बदोश है इक़बाले ख्वाहिश क़ौम को, अच्छे बुरे का किसको होश है वो शाम का समय, द्वार पे चारपाई लगाना हाथ में गुड़ वाली चाय, आसमान में चिड़ियो का चहचहाना वो मंदिर की घंटी, वो कान्हा का भजन गुनगुनाना बहुत याद आता है लालटेन के चारो तरफ बैठ के खाना यहां लोग दर्द और तकलीफ़ केवल डॉक्टर को सुनाते हैं डिप्रेशन के शिकार हैं सब, नाम के रिश्ते नाते हैं भीड़, पोल्यूशन, धक्का मुक्की और गहमा गहमी है बनावटी मुस्कुराहट तो है पर सबकी आँखों में नमी है शिक्षा, स्वास्थ, रोज़गार की माँग कर रहे गाँव इनके बिना युवाओं की मझधार में है नाव पँचवर्षी योजनाओं पर अब होनी चाहिए जाँच नेता और अधिकारी फिर करेंगे नागिन नाच छुट्टी की अर्ज़ी लगा दी है अब टिकेट भी कटा लूँगा बड़ी बेचैनी है, माँ मिल जाए तो गले से लगा लूँगा पापा के लिए घड़ी माँ के लिए नया शाॅल ला रहा हूं मैं बिछड़ के हुआ है बुरा हाल, की अब घर आ रहा हूं मैं -Vikash Varnval #RDV19 #poetry #poetrycommunity #poet #writer #writing #poeticatma #nojoto #humanity #VikashVarnval #Lonely #MissingHome #Childhood #Bachpan #home #youth #Migration