मानवता किताबों में या बातों में हमने पढ़ा, प्रबुद्धों से संदेश पाया, इंसान ओ जो इंसान के काम आया । यहां दीन, दुखी, बेवश को अनदेखा किया, जब तक कि उसका अंत समय न आया । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । जिसने दुश्मनों से प्रेम करने का संदेश दिया, मानवों ने उसे कब का स्वर्गवासी बनाया । जो मानवता की बात करे, दूर किया या दूरी बनाया, ऐसे इंसान को कब - कहां - किसने अपनाया । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । न कोई किसी दुखी का दुख बांटता, जिसको देखो ओ बस नश्तर चुभाता । हां झूठा दिखावा कर मूर्ख है बनाता, जरूरत पड़ने पर है असली रूप दिखाता । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । मैंने देखा लोग बारम्बार तमाशाबीन हुए, झुलसता रहा मानवता, मूकदर्शक प्रवीण हुए । फिर झूठे दिलासे और मानवता का बाज़ार हुए, फरेब का नकाब पहन, समर्थन पुरजोर किए । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । न देखा कभी इंसान को इंसान से मिलते, जब भी देखा, देखा स्वार्थियों को इंसान बनते । यूं कहे तो जरूरत से ही लोग हैं एक दूसरे से मिलते, वरना ये कभी दूसरों से गलती से भी न मिलते । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । कहते हैं मानव प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है, पर गर कहूं बिन मानवता सबसे बड़ी विकृति है । मानव जन्मे है पर अदृश्य मानवता की प्रकृति है, करुणा नहीं, हमदर्दी नहीं, क्या यही मानवता की अभिवृत्ति है । मानवता क्या हो तू सिर्फ किताबों या बातों में, मैंने न कभी देखा तुझे रूबरू जरूरी हालातों में । Poetry : मानवता किताबों में या बातों में