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प्रिय दोस्तो, काफ़ी दिनों से कलम शांत पड़ी है।ऐसा

प्रिय दोस्तो,
काफ़ी दिनों से कलम शांत पड़ी है।ऐसा नहीं है कि कुछ लिखने का मन नहीं होता, होता हैं परन्तु चारों ओर केवल नकारात्मकता पसरी हुई है जिन्हे पन्नो पर  अल्फाजों की शक्ल में बिखेरने का तुक मेरी समझ से परे हैं।
 हर सू वबा का माहौल है। इंसान उदासी और नकारात्मकता की जड़े पकड़ कर बैठा है। हमारी प्रकृति दुखभोगी हो गई है, जो जीवन में नकारात्मकता चाहते तो नहीं है लेकिन इसे पकड़ कर इसी का गोश्त उधेड़ कर खाने से भी बाज नहीं आते। कही आदमी जिंदगी और मौत से झूंझ रहा है तो कहीं हिन्दू - मुस्लिम के नाम पर बिमारी के लिंक जोड़े जा रहे है।किसी को कोविड की चपेट में आने को खौफ है, तो कुछ धंधा - पानी बन्द होने की वजह से मुश्किल में है। मसलन ऐसा है कि आदमी कभी खुद के लिए जीता ही नहीं है, आज भी उसे खुद की चिंता नहीं खा रही है, वो परेशान है अम्मा की दवाइयों के जानिब,लल्ला की दूध की परवाह उसे सता रही है क्योंकि जब जोरू को कुछ खाने को नहीं होगा तो उसके स्तनों में दूध की कोई बूंद बचेगी क्या???आप सभी से केवल इतना निवेदन है जितना हो सके दूसरों की मदद कीजिए ,घर के अंदर रहिए। बिमारी का कोई पॉलिटिकल कनेंक्शन है भी या नहीं हम ये नहीं जानते ,हम केवल इतना जानते है कि ईश्वर भूखा जगा सकते है लेकिन भूखा सुलाते नहीं है। ख़ुश रहिए, खुशियां बंटिए।बुरा वक्त है, गुज़र जाएगा।

©deep_sunshine1210

©@deep_sunshine1210 #5LinePoetry #Letring #Shayar #Shaayari #write #ink #Poet #picoftheday
प्रिय दोस्तो,
काफ़ी दिनों से कलम शांत पड़ी है।ऐसा नहीं है कि कुछ लिखने का मन नहीं होता, होता हैं परन्तु चारों ओर केवल नकारात्मकता पसरी हुई है जिन्हे पन्नो पर  अल्फाजों की शक्ल में बिखेरने का तुक मेरी समझ से परे हैं।
 हर सू वबा का माहौल है। इंसान उदासी और नकारात्मकता की जड़े पकड़ कर बैठा है। हमारी प्रकृति दुखभोगी हो गई है, जो जीवन में नकारात्मकता चाहते तो नहीं है लेकिन इसे पकड़ कर इसी का गोश्त उधेड़ कर खाने से भी बाज नहीं आते। कही आदमी जिंदगी और मौत से झूंझ रहा है तो कहीं हिन्दू - मुस्लिम के नाम पर बिमारी के लिंक जोड़े जा रहे है।किसी को कोविड की चपेट में आने को खौफ है, तो कुछ धंधा - पानी बन्द होने की वजह से मुश्किल में है। मसलन ऐसा है कि आदमी कभी खुद के लिए जीता ही नहीं है, आज भी उसे खुद की चिंता नहीं खा रही है, वो परेशान है अम्मा की दवाइयों के जानिब,लल्ला की दूध की परवाह उसे सता रही है क्योंकि जब जोरू को कुछ खाने को नहीं होगा तो उसके स्तनों में दूध की कोई बूंद बचेगी क्या???आप सभी से केवल इतना निवेदन है जितना हो सके दूसरों की मदद कीजिए ,घर के अंदर रहिए। बिमारी का कोई पॉलिटिकल कनेंक्शन है भी या नहीं हम ये नहीं जानते ,हम केवल इतना जानते है कि ईश्वर भूखा जगा सकते है लेकिन भूखा सुलाते नहीं है। ख़ुश रहिए, खुशियां बंटिए।बुरा वक्त है, गुज़र जाएगा।

©deep_sunshine1210

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