#मैं....एक खुली किताब हर तरफ इश्क हो चले ऐसा वो जमाना ढूंढ लेता हुँ तेरे गम मे भी नायाब खजाना ढूंढ लेता हूँ तुम तो लम्हा लम्हा मुझे रोज भुलाती होगी मैं तुझे याद करने बहाना ढूंढ लेता हूँ........ नए आशिक मिलते हैं इस नए जमाने मे लेकीन मैं तो जिन्दगी की छोटी दरारों से भी इश्क पुराना ढूंढ लेता हूँ........ रोज मिटता हैं और बनता भी रोज ये इश्क ऐसा किसी के पीछे का पागल आशिक मैं ऐसा दीवाना ढूंढ लेता हूँ........ हैं यादों कि किताब सी ये शब्दभेदी किशोर की दुनिया सबकी नजरों में ज्यों चढ़ जाए वो अफसाना मैं ढूंढ लेता हूँ........ @शब्दभेदी किशोर ©शब्दवेडा किशोर #मैं_अनबूझ_पहेली