तू सरापा है ज़िन्दगी की तरह, मुख़्तसर हूं मैं इक ख़ुशी की तरह.. मैं तेरी जुस्तजू में गुम हूं अभी, किसी दरिया में तिश्निगी की तरह.. तुझसे बिछड़ूं तो फिर कहां जाऊं! तेरी वुस्अत है रोशनी की तरह.. मेरी रग-रग में तू समाया है, मैं तेरी आंख में नमी की तरह.. मैं हूं प्यासा किसी समंदर सा, तू रवां है किसी नदी की तरह.. ख़ुश्क पत्ता हूं शाख़ पर मैं कोई, तू उसी शाख़ पर कली की तरह.. हमने घर घर में जाके दी दस्तक, कोई निकला न आदमी की तरह.. #yqaliem #wus'at #justuju #tishnagi #urdupoetry सरापा - entire मुख़्तसर - brief तिश्निगी - thirst वुस्अत - expansion