#OpenPoetry मेरी ताक़त मेरी ताक़त का तुम्हें अंदाजा नहीं में झूठ को सच और सच को झूठ में बदल सकता हूँ मेरे पीछे एक भीड़ खड़ी है जो मेरे 'न' के साथ न और मेरे 'हाँ' के साथ हाँ कहती है मेरे इस भीड़ को बगावत पसंद नहीं है मेरे इस भीड़ को ऊँची आवाज पसंद नहीं है मेरे इस भीड़ को 'न' सुनना पसंद नहीं है यह भीड़ मेरे इशारे पर कुछ भी कर सकती है ये भीड़ जहाँ भी हल्की शोर कर दे वहाँ लंबी ख़ामोशी छा जाती है असल में मेरे पिछे एक भीड़ नहीं एक ताक़त है पर ये क्या मेरे पाँव के पास आँख जैसी ये अंकुरित बीज मुझे घूर क्यों रही है,ये बीज तो अब कहने भी लगी "मुझे कुचलने से पहले मेरे पीछे खड़ी ताक़त के बारे में सोचना.. तुम्हारे सैकड़ो प्रहार से जिस चट्टान में खरोंच भी नहीं आती मैं उस चट्टान को चीर के प्रकट होने की ताकत रखता हूँ मेरे पीछे तुम से बड़ी ताक़त हैं मुझे मात्र अंकुरित बीज समझने की गलती मत करना ~अमजद अली