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" चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, बात जो हो मुनासि

" चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम
" चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम