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जीवन है जन्म-मरण के बीच का खेला, चलता रहता यूंँ




जीवन है जन्म-मरण के बीच का खेला, चलता रहता यूंँ ही रेला।
कभी गमों के सागर जैसा, कभी होता है यहांँ खुशियों का मेला।

पहली अवस्था बाल्यावस्था, होता सब कुछ बहुत रंग रंगीला।
खेल- खिलौने, गुड्डे- गुड़िया दिल बेफिक्री से पूरा भरा है होता।

दूजी अवस्था किशोरावस्था, होने लगता है मन थोड़ा छैल छबीला।
मौज मस्ती करना, दोस्त बनाना, कैरियर चुनने का होता झमेला।

तीसरी गृहस्थ जीवन, मिलता साथी और जीवन बनाता अलबेला।
मरने-जीने की संग कसमें खाते, बढ़ने लगता जिम्मेदारियों का झोला।

चौथी अवस्था वृद्धावस्था, ढलती जवानी का शुरू हो जाता खेला।
दादा-दादी, नाना-नानी बन जाते बच्चों को लेना सिखाते फैसला।

जीवन के आखिरी पड़ाव में आकर जीवन के चरण समझ में आते।
सोचते गर कोई पहले बताता तो हम भी जीवन बीताते मस्त मौला।
-"Ek Soch"





 #PnDWnaPoWriMo8
A Metaphor writing challenge
🔥 Open for All 🔥

brought to you by Proverbs World and Dreams World ♥️

 Dear PW fam! ✨



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कभी गमों के सागर जैसा, कभी होता है यहांँ खुशियों का मेला।

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चौथी अवस्था वृद्धावस्था, ढलती जवानी का शुरू हो जाता खेला।
दादा-दादी, नाना-नानी बन जाते बच्चों को लेना सिखाते फैसला।

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