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नित्य नियमित सदावर्त कर वो पिता भरणपोषण करता था, द

नित्य नियमित सदावर्त कर वो पिता भरणपोषण करता था,
दुःख,आँसू को पी वह जीवनकालचक्र में स्वतः ही फंसता था,
संतान के सुख हेतु वह दिनरात परिश्रम के पथ पर चलता था,
वर्तमान सुख को त्यागा था फिर वो पिता दर दर भटकता था

जर्जर,क्षीण होती पिता की देह अब न कुछ सह पाती थी,
पुत्र के कार्य मे बाधा न आ जाये जिव्हा चुप हो जाती थी,
पुत्र को नित रास न आया पिता का झुर्रियों भरा वो चेहरा,
तोड़ संस्कारो की बेजोड़ जंजीर पिता को वृदाश्रम धकेला,
उस आयु में सहारे की जरूरत थी पिता रह गया अकेला,
समयकालचक्र घुमा पुत्र को याद आया बीता समय अलबेला। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫प्रतिस्पर्धा में भाग लें  "मेरी रचना✍️ मेरे विचार"🙇 के साथ..

🥇"मेरी रचना मेरे विचार" आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  का  प्रतियोगिता:-०६ में हार्दिक स्वागत करता है..💐🙏🙏💐

🥈आप सभी ८ से १० पंक्तियों में अपनी रचना लिखें।  विजेता का चयन हमारे चयनकर्ताओं द्वारा नियम एवं शर्तों के अनुसार  किया जाएगा।
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संतान के सुख हेतु वह दिनरात परिश्रम के पथ पर चलता था,
वर्तमान सुख को त्यागा था फिर वो पिता दर दर भटकता था

जर्जर,क्षीण होती पिता की देह अब न कुछ सह पाती थी,
पुत्र के कार्य मे बाधा न आ जाये जिव्हा चुप हो जाती थी,
पुत्र को नित रास न आया पिता का झुर्रियों भरा वो चेहरा,
तोड़ संस्कारो की बेजोड़ जंजीर पिता को वृदाश्रम धकेला,
उस आयु में सहारे की जरूरत थी पिता रह गया अकेला,
समयकालचक्र घुमा पुत्र को याद आया बीता समय अलबेला। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

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