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हमारी ज़िंदगी में जो होते हैं अज़ीज़ मेहर ओ माह, उ

हमारी ज़िंदगी में जो होते हैं अज़ीज़ मेहर ओ माह,
उन्हीं अपने लोगों से तो होती है वफ़ादारी की चाह।
ग़ैर लोगों से प्यार वफ़ा की उम्मीद भी कहां होती है,
अपनों से बेवफ़ाई का दर्द मिले तो तकलीफ़ होती है।

©Amit Singhal "Aseemit"
  #मेहर #ओ #माह