इब्तदा ए इश्क़ में ना पूछिए हुज़ूर आलम बेज़ुबा दिल की तलबगारी का! बेचैन हुए रहते हैं मिलकर भी उनसे बयाँ न होगा हश्र!अपनी बेक़रारी का! गुमाँ था हमें कि कभी कम ना होगी अना परचम लहराएगा सदा हमारी ख़ुद्दारी का! और अब हाल ये है कि बात न हो तो मौका ढूँढते है उस बुत की ताबेदारी का! Urdu_Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ 👉 Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "ख़ुद्दारी" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको testimonial किया जाएगा ! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा।