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अबोध रहा में जीवन से, यूँ बोध करने तुम आये..! ग़म

अबोध रहा में जीवन से,
यूँ बोध करने तुम आये..!

ग़म की दलदल से निकाल,
सुख का जीवन दिखाने तुम आये..!

ख़ासियत का क्या बख़ान करूँ,
मैं कैसे तुम्हारा सम्मान करूँ..!

बिखरे जीवन को समेट कर शब्दों से,
नई दिशा दिखाने तुम आये..!

मेरे लेखों में जो दर्द पढ़ा,
उसे खुशियों में गढ़ने तुम आये..!

मित्रता हो तुम्हारे जैसी,
सुदामा की ग़रीबी को नया धाम बनाने तुम आये..!

स्वार्थ भरी इस दुनिया में,
अर्थ जीवन का बताने तुम आये..!

अपनों की इस भीड़ में भी,
अपनापन जताने सिर्फ तुम आये..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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