बचपन और लुका-छिपी खाट के नीचे ,पर्दे के पीछे , ऑंखें मीचे ,दरवाज़े के पीछे , छुपकर खेली है आंख मिचौली , देख रही थी जिंदगी मुझे , शायद सीख रही थी खेलना लुका-छिप्पी , आज वो खेलती है मैं छुपता हूँ , पर उसके ढूंढने से कहाँ बचता हूँ