रोका है मुझे तुम्हारी निगाहों ने,अदाओं ने और इन फिज़ाओं ने। रोका है हर उस खयाल ने जो हमें जोड़े रखता है। रोका है उन यादों ने जो सिर्फ और सिर्फ हमारी थी। रोका है उस वक्त ने जिस पर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा है। रोका है उस सुकून ने जो मुझे और कहीं नही मिलता। रोका है उस मुस्कान ने जिसे देखे बिना दिल नही भरता। रोका है उस आवाज़ ने जिसे सुनने को मन हर वक्त ही आतुर रहता है। रोका है तुम्हारे इस चेहरे ने,जो दिल और दिमाग़ से कभी नही हटता। रोका है तुम्हारे साथ ने जिसकी वजह से मै हज़ारों की भीड़ में भी अकेली नही पड़ती। रोका है उन आंसुओ ने जो सिर्फ तुम्हारे लिए बहे थे। रोका है उन जज्बातों ने जिनमें तुम हमेशा से ही शामिल हो। रोका है तुम्हारे इस नाम ने जिसमे मुझे खुद का वजूद दिखता है। रोका है मुझे इस डर ने के तुम्हारे बगैर मेरा क्या होगा। रोका है मुझे उस पनाह ने जो शायद तुम्हे भी नही दिखती। रोका है मुझे उस इत्तेफाक़ ने जिसके होने की दुआ मै बार बार करती हूं। रोका है मुझे "तुम" ने क्यूंकि यहां तुम्हारे अलावा तो कुछ है ही नही। "सुकून" किस बात पर मै तुम्हारी तारीफ़ करूं के तुम्हारी तो हर बात मे सुकून है। वो हाथों से बालों को सहराना सुकून है। तुम्हारी निगाहों मे ख़ुद को देखना सुकून है। वो सांसों का चलना सुकून है। तुमसे मेरा नाम सुनना सुकून है।