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रुखसत-ए-यार का मंज़र भी क्या मंज़र था मैंने खुद

रुखसत-ए-यार का मंज़र भी क्या मंज़र था 

मैंने खुद को ख़ुद से बिछड़ते हुए देखा....!

©हरिओम सुल्तानपुरी
  रुखसत-ए-यार का मंज़र भी क्या मंज़र था 

मैंने खुद को ख़ुद से बिछड़ते हुए देखा....!

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रुखसत-ए-यार का मंज़र भी क्या मंज़र था मैंने खुद को ख़ुद से बिछड़ते हुए देखा....! #SAD #Emotional #hurt #dukh #akelapan #rukhsat #Galib #Up Poetry #shayri

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