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कोफ्त दिल से जुबां से आह निकली जा रही है ज़िंदगी क

कोफ्त दिल से जुबां से आह निकली जा रही है 
ज़िंदगी क्यूं हाथों से सरे राह निकली जा रही है 

आया ये मौसम कैसा हाशिये पे सांस दर सांस है 
जिस्म से जान की देखो चाह निकली जा रही है 

बन गया है वक़्त भी पहलू में अचानक से मेहमाँ 
थामने पर भी लम्हों की बांह निकली जा रही है 

कि अब तो अगले ख्याल के ख्याल से भी है डर 
है तलाश क्या ओ कहां निगाह निकली जा रही है

सोचा न था के दिनों में दिखेगी शबों की स्याही यूं 
न जाने कहाँ उजालों की पनाह निकली जा रही है 

इतने पर भी अगर हो जाए ये इल्म तो अच्छा है 
रोक लो साँसों की जो परवाह निकली जा रही है

©Vishal Sharma #take_care
कोफ्त दिल से जुबां से आह निकली जा रही है 
ज़िंदगी क्यूं हाथों से सरे राह निकली जा रही है 

आया ये मौसम कैसा हाशिये पे सांस दर सांस है 
जिस्म से जान की देखो चाह निकली जा रही है 

बन गया है वक़्त भी पहलू में अचानक से मेहमाँ 
थामने पर भी लम्हों की बांह निकली जा रही है 

कि अब तो अगले ख्याल के ख्याल से भी है डर 
है तलाश क्या ओ कहां निगाह निकली जा रही है

सोचा न था के दिनों में दिखेगी शबों की स्याही यूं 
न जाने कहाँ उजालों की पनाह निकली जा रही है 

इतने पर भी अगर हो जाए ये इल्म तो अच्छा है 
रोक लो साँसों की जो परवाह निकली जा रही है

©Vishal Sharma #take_care