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किताबो के बोझ ने कब कंधे झुका दिए पता ही ना चला...

किताबो के बोझ ने कब कंधे झुका दिए
पता ही ना चला...
झुकते कंधो ने कब झुकना सिखा दिया
पता ही ना चला...
मिट्टी मे खेलते हाथ Laptop से जा मिले
पता ही ना चला...
स्कूल वाला टिफिन कब canteen मे बदल गया
पता ही ना चला ...
Lunch break मे खेलते - खेलते 
कब corporate मजदूर जा बने
पता ही ना चला...
class मे बैठ कर हसी छुपाया करते थे 
झूठी हसी कबसे हसने लगे
पता ही ना चला...
home work करने वाले हाथ कब पंक्तियां लिखने लगे
पता ही ना चला...

©Rupam Shukla #corporate majdur
किताबो के बोझ ने कब कंधे झुका दिए
पता ही ना चला...
झुकते कंधो ने कब झुकना सिखा दिया
पता ही ना चला...
मिट्टी मे खेलते हाथ Laptop से जा मिले
पता ही ना चला...
स्कूल वाला टिफिन कब canteen मे बदल गया
पता ही ना चला ...
Lunch break मे खेलते - खेलते 
कब corporate मजदूर जा बने
पता ही ना चला...
class मे बैठ कर हसी छुपाया करते थे 
झूठी हसी कबसे हसने लगे
पता ही ना चला...
home work करने वाले हाथ कब पंक्तियां लिखने लगे
पता ही ना चला...

©Rupam Shukla #corporate majdur
rupamshukla1918

Rupam Shukla

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