किताबो के बोझ ने कब कंधे झुका दिए पता ही ना चला... झुकते कंधो ने कब झुकना सिखा दिया पता ही ना चला... मिट्टी मे खेलते हाथ Laptop से जा मिले पता ही ना चला... स्कूल वाला टिफिन कब canteen मे बदल गया पता ही ना चला ... Lunch break मे खेलते - खेलते कब corporate मजदूर जा बने पता ही ना चला... class मे बैठ कर हसी छुपाया करते थे झूठी हसी कबसे हसने लगे पता ही ना चला... home work करने वाले हाथ कब पंक्तियां लिखने लगे पता ही ना चला... ©Rupam Shukla #corporate majdur