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सफर अधुरे हैं मेरे शब्द अधुरे हैं तलाश में हूँ मैं

सफर अधुरे हैं
मेरे शब्द अधुरे हैं
तलाश में हूँ मैं
मेरे मंज़िल अधुरे हैं ।

इक कयामत की रात अभी बाकी हैं
मंज़िल तक पहुंचने में कई इत्तेहान बाकी हैं
अपनी कलम की स्याही से एक मुकाम लिखना अभी बाकी हैं ।

चल रहा हूँ मैं मुसाफ़िर की तरह कई राहो से
इक खास राहें बनाना अभी बाकी हैं।

मैं थका नहीं हूँ, अभी बिका नहीं हूँ 
मैं गिरा हूँ, झुका हूँ पर अभी रुका नहीं हूँ।

आज़माते हैं ये वक्त मुझे कई राहे देकर
इन राहों से मैं ताल्लुक किया हूँ।

कहां से निकला हूँ कहाँ तक जाना हैं
एक सफर हैं अपनी बस मंज़िल तक जाना हैं।

मंज़िल मेरी आवारगी कहां देखी है 
मेरे अंदर की अभी हुंकार नहीं देखी है
मैं चला हूँ इक आवारापन की तरह.. 
अभी ये मेरी आवारगी कहां देखी हैं।

©Deepak Kumar
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