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पुल जोड़ता है वो नदी के दो किनारों को! ल

पुल

  जोड़ता है वो
   नदी के दो किनारों को! 
   लगाता बेड़ा पार
    कंधे पर लाद हजारों को ! 

  न पूछता किसी की जाति
   दुनियाँ की भाँति ! 
    न पूछता किसी का धर्म, 
    न उसका कर्म! 
     
    खुशी मिलती है उसे देख, 
     लाचारों को! 

      बोझ को बोझ, 
       न समझता है! 
       बेवजह किसी से, 
       न उलझता है! 

        सहारा देता है, 
         बेसहारों को! 
   
        तैरना जनता नहीं है जो, 
        उसका मांझी बना खड़ा है वो! 
        उसको बदले में कुछ नहीं चहिए, 
        सिवाय इसके शुक्रिया कहिए! 

       लेटकर शांत अकेला "बेखुद"
      निहारता रात भर सितारों को!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
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