धधक रहा चिता अनल अनल की ज्वाला है प्रबल, उठ रहा धुआँ धुआँ बज रही हैं घंटियाँ, शांत है हृदय यहाँ शून्य सी है चेतना, शून्य सा ये व्योम है शून्य शक्ति है सबल, धधक रहा चिता अनल। जठर में अग्नि जल रही असह्य हो रही क्षुधा, प्रशस्त या अप्रशस्त हो मार्ग चुनती है द्विधा। मांगती ये अन्न अथवा मांगती ये प्राण है, भस्म करती अन्न को ये अग्नि रूपी बाण है। ©®सोमेश त्रिवेदी #NojotoQuote बड़े दिनों के बाद पुनः उपस्थित हूँ... अपनी नई रचना के साथ 🙏🙏🙏🙏 👇👇👇👇👇👇👇👇 धधक रहा चिता अनल अनल की ज्वाला है प्रबल, उठ रहा धुआँ धुआँ