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[08.] ज़ज़्बात काग़ज़ पर उतारने की आदत पुरानी है

[08.]

ज़ज़्बात काग़ज़ पर उतारने की आदत पुरानी है
बिखरे पन्नों को अब किताब कौन देगा। 
जीतकर भी नहीं जीत पाता नामौजुदगी में उसकी
हारे हुए को अब ख़िताब कौन देगा। 
दिनों की वसूली तो कर ली मैंने
तन्हा रातों का हिसाब कौन देगा।।

©Rohit Bhargava (Monty)
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