मैंने ऐसेही अपने पापा से पूछा ,अगर हम दीवाली को घर नहीं आये होते तो क्या आप दीप जलाते ? वो बोले , जलाते जरूर लेकिन उनका कोई मतलब नहीं रहता क्यूंकि मेरे घर की असली रोशनी तो घर में ही नहीं होगी , मैं पटाखा भी जलाऊंगा लेकिन उनकी गूंज का भी कोई मतलब नहीं होगा क्यूंकि इन कानों को तुम्हारी आवाज़ से ज्यादा कोई शोर पसंद नहीं है । मैं घर साफ सफाई से चमका दूंगा लेकिन जब तक तुझे कोई नए कपड़े ना दिलादू तब तक मेरे दिल को सुकून नहीं मिलेगा ।बाद में उन्होंने कुछ ऐसा कहा, छीलते हुए मेरे जिस्म की तू बस खुश रहे यही ख्वाहिश है ,ढलते हुए इन आंखों की तू कुछ अच्छा करे यही एक गुज़ारिश है ,दीवाली क्या अगले साल भी आएगी पर जिस दिन इस घर में ना हो वो हर दिन एक बिन मौसम गम की बारिश है । #deepawali