#OpenPoetry नफरतों की दरारो का,मंसूबा तोड़ा है। नासूर था जबसे,अब दर्द थोड़ा है।। कोई जहर ए दर्या में, मधुर सा रस घोला है। हटा तीन सत्तर, कटा मां का शीष जोड़ा है। ....jisu jammu & kashmir