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खैर उम्र के साथ आपके नैतिक मूल्यों पर आपके अनुभव,

खैर उम्र के साथ आपके नैतिक मूल्यों पर आपके अनुभव, सामाजिक और पारिवारिक दबाव हावी हो जाते है, और आपकी सोच बदल जाती है, वो उम्र अलग थी मासूमियत वाली जहां ईमानदारी से एक आकर्षण शुरू हुआ और एक अरसे तक बरकरार रहा, अब इतना समय नही है भावात्मक की जगह नही जहां प्रयत्न के पहले निष्कर्ष की पॉसिबिलिटी नापी जाती है दिमाग में फिल्टर लग गए है, नौकरी हो तो कैसी हो लड़की हो तो कैसी हो , ओवरआल अब इश्क या आकर्षण जो भी मान लो मन में फिल्टर को पास करने के बाद अगर पास हुई तो प्यार का क्या है कर ही लेंगे

खैर उम्र के साथ आपके नैतिक मूल्यों पर आपके अनुभव, सामाजिक और पारिवारिक दबाव हावी हो जाते है, और आपकी सोच बदल जाती है, वो उम्र अलग थी मासूमियत वाली जहां ईमानदारी से एक आकर्षण शुरू हुआ और एक अरसे तक बरकरार रहा, अब इतना समय नही है भावात्मक की जगह नही जहां प्रयत्न के पहले निष्कर्ष की पॉसिबिलिटी नापी जाती है दिमाग में फिल्टर लग गए है, नौकरी हो तो कैसी हो लड़की हो तो कैसी हो , ओवरआल अब इश्क या आकर्षण जो भी मान लो मन में फिल्टर को पास करने के बाद अगर पास हुई तो प्यार का क्या है कर ही लेंगे

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