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... मै सागर सा स्वच्छंद हूँ केशव, पर तुमसे मै बँध

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मै सागर सा स्वच्छंद हूँ केशव, पर तुमसे मै बँध जाती हूँ 
अपनी आस और उम्मीदों में, तेरा ही अक्स मै पाती हूँ ।

( कृपया अनुशीर्षक भी पढ़े )
 हे सखे ! मेरे मन में तुम हो, 
तुमसे ही मेरा जीवन संभव
सरस-सुमधुर हर क्षण बीते, 
जब स्नेह तुम्हारा है मुझपर 

स्नेही बनकर तुम साथ रहे, 
मुझे मिला तुम्हीं से अपनापन 
जब सावन का रिमझिम था,
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मै सागर सा स्वच्छंद हूँ केशव, पर तुमसे मै बँध जाती हूँ 
अपनी आस और उम्मीदों में, तेरा ही अक्स मै पाती हूँ ।

( कृपया अनुशीर्षक भी पढ़े )
 हे सखे ! मेरे मन में तुम हो, 
तुमसे ही मेरा जीवन संभव
सरस-सुमधुर हर क्षण बीते, 
जब स्नेह तुम्हारा है मुझपर 

स्नेही बनकर तुम साथ रहे, 
मुझे मिला तुम्हीं से अपनापन 
जब सावन का रिमझिम था,