... मै सागर सा स्वच्छंद हूँ केशव, पर तुमसे मै बँध जाती हूँ अपनी आस और उम्मीदों में, तेरा ही अक्स मै पाती हूँ । ( कृपया अनुशीर्षक भी पढ़े ) हे सखे ! मेरे मन में तुम हो, तुमसे ही मेरा जीवन संभव सरस-सुमधुर हर क्षण बीते, जब स्नेह तुम्हारा है मुझपर स्नेही बनकर तुम साथ रहे, मुझे मिला तुम्हीं से अपनापन जब सावन का रिमझिम था,