बहुत सूनी सूनी सी हो गई है ये ज़िन्दगी ढूँढता हूँ हर घड़ी जाने किसकी है कमी ना लोग बेगाने यहाँ ना ही परायी है ज़िन्दगी अपनों की भीड़ में ये तनहाई कहाँ से आ गई हर तरफ के शोर में खामोशियाँ भी हैं घुली हँसते चेहरों के दरमियाँ मायूस भी है कोई ग़म की वजह कोई नहीं ग़मगीन सा मैं हूँ मगर याद अब वो आता नहीं आँखों में क्यूँ है नमीं 22.10.1994 #पुरानी_डायरी #yqbaba #yqdidi