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दादी कहूँ या फिर कहूँ पापा की अम्मा। या कहूँ मम्म

दादी कहूँ या फिर कहूँ पापा की अम्मा। 
या कहूँ मम्मी की सासूमा। 
अनेक किरदार निभा रही है वो। 
सब कुछ भली-भांति निभा रही है वो। 
घर की बुजुर्ग, थोड़ी गुस्सेल, थोड़ी प्यारी। 
लुटाती प्यार तो कभी लगाती फटकार। 
बहुत करती मुझसे प्यार। 
बचपन से ही अद्भुत है उनका रिश्ता मेरे साथ।
 वो मेरी रक्षक। 
छोटे में जब मम्मी दौड़ादेती उसके गोद में मैं जाकर छुप जाता। 
फिर किसी के हाथ न आता।
 पापा जब गुस्सा हो जाते। 
दादी उन्हें चुप कराती। 
कोई तो छुके मुझे दिखाओ। 
जब दादी होती है पास। 
एक अद्भुत रिश्ता जो है बहुत खास।

©Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal)
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