पुरुषों का रोना महज रोना नही होता निशानी होती है उनके टूटने की टूट कर बिखरने की और बिखर कर स्वयं को नष्ट करने की इस कवायद में पुरुष न जाने कितनी बार प्राप्त होते हैं उस मृत्यु को जो उन्हें उपहार में मिलती है उस जीते हुए मरने का दंश झेल रहे तो होते हैं पर कोई समझ न पता उनके इस दंश के भीतर छुपी हुई उस पीड़ा को उस पीड़ा से उठने वाली हर एक टिस हजार मौतें देती हैं पर इस निष्ठुर कृपा करने वालों के शिकंजे से बाहर निकलना सरल भी तो नही।। ©AKASSH aqsdp #my_quotes