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मैं नीम की निबौली नहीं हूँ न चाशनी में लिपटी जलेब

मैं नीम की निबौली नहीं हूँ 
न चाशनी में लिपटी जलेबी हूँ,
मैं कठोर शिल नहीं हूँ
न कपास पुष्प सी कोमल हूँ,
मैं सिंधु की लहर नहीं हूँ
न कूप का शीतल जल हूँ,

क्यों तलाशते हो मुझको
सिर्फ अक्षों के किनारों पर,
तुम पाओगे मुझको
क्रोध और प्रेम के बीच उठती तरंगों पर,
स्वार्थ और समर्पण के बीच उभरते रंगों पर,
चंचलता और परिपक्वता के बीच निखरते जीवन पर,
मृदुभाषिता और स्पष्टवादिता के बीच कहीं संतुलित होते,
हमेशा मूलबिन्दु के इर्दगिर्द ही घूमते हुए !
 #नारी #संतुलित #मूलबिन्दु #हिंदी_कविता #yqdidi
मैं नीम की निबौली नहीं हूँ 
न चाशनी में लिपटी जलेबी हूँ,
मैं कठोर शिल नहीं हूँ
न कपास पुष्प सी कोमल हूँ,
मैं सिंधु की लहर नहीं हूँ
न कूप का शीतल जल हूँ,

क्यों तलाशते हो मुझको
सिर्फ अक्षों के किनारों पर,
तुम पाओगे मुझको
क्रोध और प्रेम के बीच उठती तरंगों पर,
स्वार्थ और समर्पण के बीच उभरते रंगों पर,
चंचलता और परिपक्वता के बीच निखरते जीवन पर,
मृदुभाषिता और स्पष्टवादिता के बीच कहीं संतुलित होते,
हमेशा मूलबिन्दु के इर्दगिर्द ही घूमते हुए !
 #नारी #संतुलित #मूलबिन्दु #हिंदी_कविता #yqdidi
vibhakatare3699

Vibha Katare

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