मेरी सुलगती यादों से .. एक मेघ बना,उस शांत शून्य में, एक हलचल कर , हौले से.. कुछ बारिश की बुँदे,उस बंजर जमीं में जो शायद कुछ मेरे सुर्ख होंठो की तरह है, उनको अपने प्यार के उस बूँद से, स्पर्श कर कींचड़ पैदा कर ... फिर हमारी यादों की कुमुदनी को, हौले से.. खिलने में सहारा दे .. और कुछ बूंदो को सहेज कर रखना भी.. जब वो कुमुदनी पुनः कुम्हलाने को, विवश हो उससे पहले... उन बूंदो को, हमेशा के लिए , उस कुमुदनी का "मुंतजिर" बना दे..